अपने घट दीपक बार री

 अपने घट दीपक बार री

अपने घट दीपक बार री।

तत्व को तेल दया की बाती,

ब्रह्म अगिन उद्गार रीटेका

निर्मल जोत निहार गगन में,

तन मन धन सब वार री।

सुरति सोहागिन जोग ध्यान में,

गुर गम पंथ सुधार री ॥१॥

काम क्रोध मद लोभ मोह की,

झोंको ये सब भार री ।

कहें कबीर सुनो भाई साधो,

अपने कंत निहार री ||

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