मन रे तू बुझ शब्द उपदेशा
मन रे तू बुझ शब्द उपदेशा
मन रे तू बुझ शब्द उपदेशा ।
सार शब्द औ गुरुमुख बानी,
ताका गहो संदेसा ॥टेक।
जाहि शब्द को मुनिवर खोजे,
ब्रह्मादिक सो ज्ञानी ।
सोई शब्द गुरु चरणन लागे,
भक्ति हेत कर प्रानी ॥१॥
प्रथमें दया दीनता आवे,
हांसी मिथ्या त्यागी ।
आतम चीन्ह परातम जाने,
सदा रहे अनुरागी ।।२।।
पद प्रतीत औ शब्द कसौटी,
निस दिन बिरह बिरागी।.
जहाँ को अर्थ जहाँ लो बूझे,
जहाँ लागी जहां लागी ||३||
कहें कबीर यह शब्द को बूझे,
मानै सीख हमारी ।
काल दुकाल तहाँ न ब्यापै,
सदा करों रखवारी ॥४॥
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