रस गगन गुफा में अजर झरे

 रस गगन गुफा में अजर झरे

रस गगन गुफा में अजर झरै ।

बिन बाजा झनकार उठै जहँ,

समुझि परै जब ध्यान धरै।।टेका।

बिना ताल जहँ कँवल फुलाने,

तेहि चढि हंसा केल करै।

बिन चंदा उजियारी दरसै,

जहँ तहँ हंसा नजर परै ॥१॥

दसवें द्वारे तारी 'लागी,

अलख पुरूष जाको ध्यान धरे।

काल कराल निकट नहिं आवै,

काम क्रोध मद लोभ जरै ॥२॥

जुगन जुगन की तृष्णा बुझानी,

कर्म भर्म आधि ब्याधि टरै।

कहैं कबीर सुनो भाई साधो,

अमर होय कबहूं न मरै ||३||

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