पानी में मीन पियासी

 पानी में मीन पियासी

पानी में मीन पियासी,

मोहि सुन सुन आवत हांसी ।।टेक

आतम ज्ञान बिना नर भटके,

कोई मथुरा कोई काशी ।

जैसे मृगा नाभि कस्तूरी,

बन बन फिरत उदासी ॥


जल बीच कवल कँवल बीच कलियाँ,

तापर भँवर निवासी ।

सो मनवस त्रैलोक भयो है,

यती सती सन्यासी ।।२।।

||३||

जाको ध्यान धरे विधि हरिहर,

मुनिजन सहस अठासी ।

सो तेरे घट मांहि विराजे,

परम पुरूष अविनासी ||३||

है हाजिर तोहे दूर बतावे,

दूर की बात निरासी ।

कहै कबीर सुनो भाई साधो,

गुरू बिन भरम न जासी ॥४||


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