मन मस्त हुआ तब क्यों बोले
मन मस्त हुआ तब क्यों बोले
मन मस्त हुआ तब क्यों बोले ।।
हीरा पायो गाँठ गठियाओ,
बार बार वाको क्यों खोले ॥१॥
हलकी थी तब चढ़ी तराजू,
पूरी भई तब क्यों तोले ||२||
सुरत कलारी भई मतवारी,
मदवा पी गई बिन तोले ||३||
हंसा पाये मानसरोवर,
ताल तलैया क्यों डोले ||४||
तेरा साहिब है घट मांही,
बाहर नैना क्यों खोले ॥५॥
कहें कबीर सुनो भाई साधो,
साहिब मिल गये तिल ओले ॥६॥
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