अवधू सो जोगी मतवारा

 अवधू सो जोगी मतवारा

अवधू सो जोगी मतवारा,

जाके अन्तर भया उजियाला टेका।

अजपा जाप जपे निसिवासर,

दुविधा चित्त नहीं धारे ।

सबसे न्यारा सबके माहीं,

ऐसा ब्रह्म विचारे ॥१॥

आशा परखे तृष्णा परखे,

परख परख सब लेवे ।

गुरू के ज्ञान अगम को परचे,

ब्रह्म अगनि में देवे ।।२।।

मेती सुरति नाद घर माही,

तन सो रहे निरासा ।

प्रेम पियाला उलट के पीवै,

सहज होय परकासा ।।३।।

सुरति निरति अरू पाँचों पवना,

एकही संग चलावे 

रहे समाय प्रेम सागर में,

मन में मंगल गावे ||४||

कलह कल्पना निकट न आवे,

निसि दिन नाम उचारे ।

कहें कबीर अपनो क्या संसय,

सो जन और ही तारे ||५||

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