मिलना हो तो मिलजुल लीजे
मिलना हो तो मिलजुल लीजे मिलना है तो मिलजुल लीजे, ये ही दम का मेला है |टेक।। दीपक है तो घट उजियारा, ज्ञान गुरू मन चेला है। जाको बुझ परे सो मानुष, ना तो माटी ढेला है ||१|| बौरा गांव अनोखी बस्ती, कोई रोता कोई हँसता है | इस नगरी की रीत यही है, सुख महंगा दुख ससता है ।।२।। साध संत को बुंद का नाहीं, पाप का मेह झमकता है। चहुँ ओर देखो चीखल पानी, जो आता सो फंसता है ॥३॥ अमरलोक से आया बंदे, फिर अमरापुर जाना है । कहें कबीर सुनो भाई साधो, ऐसी लगन लगाना है ।।४।। सांई सुमरे सो हंस कहावे, कामी क्रोधी काग रे । कहें कबीर दया सतगुरू की, प्रगटे पूरन भाग रे ||५||j