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मिलना हो तो मिलजुल लीजे

 मिलना हो तो मिलजुल लीजे मिलना है तो मिलजुल लीजे, ये ही दम का मेला है |टेक।। दीपक है तो घट उजियारा, ज्ञान गुरू मन चेला है। जाको बुझ परे सो मानुष, ना तो माटी ढेला है ||१|| बौरा गांव अनोखी बस्ती, कोई रोता कोई हँसता है | इस नगरी की रीत यही है, सुख महंगा दुख ससता है ।।२।। साध संत को बुंद का नाहीं, पाप का मेह झमकता है। चहुँ ओर देखो चीखल पानी, जो आता सो फंसता है ॥३॥ अमरलोक से आया बंदे, फिर अमरापुर जाना है । कहें कबीर सुनो भाई साधो, ऐसी लगन लगाना है ।।४।। सांई सुमरे सो हंस कहावे, कामी क्रोधी काग रे । कहें कबीर दया सतगुरू की, प्रगटे पूरन भाग रे ||५||j

होशदार होय रहो मुसाफिर

 होशदार होय रहो मुसाफिर होशदार होय रहो मुसाफिर, कजाक' फिरता गली गली ||टेक।। इस नगरी में तीन चोर बसत हैं, जाये पाँचों से खबर करी । ताके बीच ठगन बन चौकस, लेत खबर तेरी घरी घरी ||१|| इस नगरी में दस दरवाजे, खिरकी जामें नवी परी । नया दुवार नवी है खिरकी, अंत समय की सुध बिसरी ॥२॥ जब जम आवै यह सराय में, पात पात तोहि लूट लई । जबरदस्त भटियार पचीसों, छीन लेय तेरी सिर गठरी ॥३॥ जिन सोया तिन मूल गंवाया, जागा तिनकी राह भली । कहें कबीर निशा मतवाले, भोर भया उठ मिला जुली ॥४॥