खबर नहीं या जग में पल की

 खबर नहीं या जग में पल की

खबर नहीं या जग में पल की।

सुकृत कर ले नाम सुमर ले,

को जाने कल की ।।टेक।।

कौड़ी कौड़ी माया जोरी,

बात करे छल की ।

पाप पुन्य की बांध पोटरिया,

कैसे होय हलकी ||१||

तारन बीच चंद्रमा झलके,

जोत झलाझल की ।

एक दिन पंछी निकस जायेगा,

मट्टी जंगल की ॥२॥

मात पिता परिवार भाई बंद,

तिरिया मतलब की

माया लोभी नगर बसत है,

या अपने कब की ||३||

यह संसार रैन का सपना,

ओस बुन्द झलकी ।

कहें कबीर सुनो भाई साधो,

बातें सतगुरु की ||४||


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