संतो दृष्टि परै सो माया
संतो दृष्टि परै सो माया
२॥
संतो दृष्टि परै सो माया।
वह तो अचल अलेख एक है,
ज्ञान दृष्टि में आया ।।टेक।।
सतगुरु दिये बताय आप में,
है मांही सत सोई ।
दूजा कृत्रिम थाप लिया है,
मुक्ति कौन विधि होई ॥१॥
काया झांई त्रिगुन तत्व की,
बिनसे कहवां जाई ।
३||
जल तरंग जल ही सो उपजे,
फिर जल मांहि समाई ||२||
ऐसा देह सदा गत सबकी,
मन में हरदम कोई उचारे ।
आपै भयो नाम धर न्यारा,
इस विधि माया देख बिचारे ||३||
आपै रहो समाय समुझ में,
ना कहुं जाये न आवै ।
ऐसी श्वासा समुझ परे जब,
पुजे काह पुजावै ॥४||
धरै न ध्यान करै ना जप तप,
राम रहीम न गावे ।
तीरथ ब्रत सकलो भ्रम छोड़े,
सुन्न दौर न जावे ।।५।।
जोग जुगत सो कर्म न छुटे,
आप अपन ना सूझे ।
कहे कबीर सोई संत जौहरी,
जो यह समुझे बूझे ॥६॥
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