मन तू क्यों भूला रे भाई
मन तू क्यों भूला रे भाई
मन तू क्यों भूला रे भाई,
तेरी सुधिबुधि कहाँ हिराई
जैसे पक्षी रैन बसेरा,
बसै वृक्ष पर आई ।
भोर भई सब आप आपने,
जहाँ तहाँ उड़ि जाई ||
सपनें में तोहि राज मिल्यो है,
हाकिम हुकुम दुहाई ।
जागि परे तब लाव न लशकर,
पलक खुले सुधि पाई ॥
मात पिता बन्धु सूत तिरिया,
ना कोई सगो सगाई
यह तो सब स्वारथ के संगी,
झूठी लोक बड़ाई ।
सागर माँही लहर उठत है,
गिनती गिनी न जाई
कहैं कबीर सुनो भाई साधो,
दरिया लहर समाई
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