आपही धारमधारी साहेब

आपही धारमधारी साहेब

आपही धारमधारी साहेब,

आपही खेल खिलारी है। टेक।।

पांच तत्व का किया पसारा,

तिरगुण माया सारी है।

चेतन रुप आप होय बैठा,

यही अचम्भा भारी है ||१||

तंबू तो असमान तनाया,

जमी दूलीचा डारी है ।

चाँद सूरज दोऊ बरे मशालें,

तेरी कुदरत न्यारी है ॥२॥

सुरत निरत की चौपर माड़ी,

तू पासा जग सारी है ।

पासा चाहे जिसे जितावे,

सारी कौन बिचारी है ||३||

छके पंजे सों नरद बचावे,

बाजी कठिन करारी है ।

जाकी नरद पकी घर आवे,

सोई सुघर खिलारी है ||४||

जाके सिर पर साहब राजी,

ताको जगत भिखारी है।

कहें कबीर समुझ के खेलो,

अबकी जीत हमारी है ॥५॥



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