हंसा आप में आप निबेरो
हंसा आप में आप निबेरो
हंसा आप में आप निबेरो ।
आपन रुप देख आपहिं में,
नौ निधि होवे चेरो ||टेक
जागृत रहो सदा दिल मांही,
ज्ञान रसिक ढिग हेरो ।
आपा मध्ये आप निहारो,
आपा मेट सबेरो ॥
सुरत आगे निरत कर ले,
सिद्ध मिले बहु तेरो ।
गृह बन बैठे काम धाम में,
राह चलत पग हेरो ।।
४
जागत लागो सोवत सपने,
फहम' करे फल केरो ।
सुषमन के घर फहम करे जब,
तुरिया चित चितेरो ||३||
फहम आगे फहम पीछे,
फहम दहिने हेरो ।
फहम पर जो फहम देखै,
सो फहम है मेरो ||४||
अष्टौ सिद्धि नव निधि पावै,
सतगुरु फहम निबेरो ।
कहें कबीर भुंगी के कीड़ा,
बहुरन कीट हि घेरो ।।५।।
का
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