ठगनी का नैना झमकावे
ठगनी का नैना झमकावे
ठगनी का नैना झमकावे,
तोरे हाथ कबीर न आवे ।।
कद्दू काट मृदंग बनावे,
नीबू काट मजीरा
पाँच तोरई मंगल गावे,
नाचे बालम खीरा
रुपा पहिर के रुप दिखावे,
सोना पहिर ललचादे
गले डार तुलसी की माला,
तीन लोक भरमावे
मूसों की सभा सर्प एक नाचे,
मेंढक ताल लगावे ।
चोली पहिर के गदही नाचे,
ऊँट विष्णु पद गावे ||३||
वृक्ष चढ़े मछली फल तोड़े,
कछुवा भोग लगावे ।
कहें कबीर सुनो भाई साधो,
बिरला अर्थ लगावे ||४||
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