बहुरि हम काहे को आवेंगे

 बहुरि हम काहे को आवेंगे

बहुरि हम काहे को आवेंगे।

बिछरे पंच तत्व की रचना,

तब हम रामहि पावेंगे ।

पृथ्वी का गुण पानी सोष्या,

पानी तेज मिलावेंगे ॥१॥

तेज पवन मिल पवन शब्द मिल,

एक हि गलि तपावेंगे ।

ऐसे हम लोक वेद के बिछुरे,

सुन्नहि माहिं समावेंगे ||२||

जैसे जलधि तरंग तरंगनी,

ऐसे हम दिखलावेंगे ।

कहै कबीर स्वामी सुख सागर,

हंसहि हंस मिलावेंगे ||३||


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