हमको ओढ़ावै चदरिया

 हमको ओढ़ावै चदरिया

हमको ओढ़ावै चदरिया,

चलती बिरिया टेक॥

प्रान राम जब निकसन लागे,

उलट गई दोनों नैन पुतलिया ||१||

भीतर से जब बाहर लाये,

छूट गई सब महल अटरिया ॥२॥

चार जना मिलि खाट उठाये,

रोवत ले चले डगर डगरिया ॥३॥

कहत कबीर सुनो भाई साधो,

संग चली बस सूखी लकड़िया ॥४॥

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