करम गति टारे ना टरे
करम गति टारे ना टरे
करम गति टारे ना टरे ।।
गुरु वशिष्ठ महामुनि ज्ञानी,
लिख लिख लग्न धरे ।
सीता हरन मरन दशरथ को,
बन बन बिपति परे ||१||
कहाँ वे राहू कहाँ वे रवि शशि,
आन संजोग परे ।
सतवादी हरिचन्द राजा,
नीच घर नीर भरे ॥२॥
दुरवासा ऋषि श्राप दियो है,
यदु कुल नास करै ।
पंडवन के हरि सदा सारथी,
सो भी बन बिचरै ॥३॥
तीनो लोक कर्म गति के बस,
जीव से काह सरे ।
कहें कबीर सुनो भाई साधो,
भूला भटक मरे ।
Comments
Post a Comment