क्या सोया गफलत के माते

 क्या सोया गफलत के माते

क्या सोया गफलत' के माते,

जाग जाग उठ जाग रे।।टेक।।

उमदा चोला बना अमोला,

लगा दाग पर दाग रे ।

दो दिन की जिन्दगानी जगत में,

जरत मोह की आग रे ||१||

तन सराय में जीव मुसाफिर,

करता बड़ा दिमाग रे।

रैन बसेरा करले डेरा,

चला सबेरा ताक रे ।।२।।

कर्म केंचुली लगी चित में,

भया मनुष से नाग रे ।

पड़ता नहीं समुझ सुखसागर,

बिना प्रेम बैराग रे ॥३॥

यह संसार विषय रस माते,

देखो समुझ बिचार रे ।।

मन भौरा तू विष के वन तज,

चल साहेब के बाग रे ॥४॥

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