गुरु जननी मैं बालक तेरो
गुरु जननी मैं बालक तेरो
गुरु जननी मैं बालक तेरो,
काहे न अवगुन बगसहु मेरो ।।टेका।
बालक मलीन जो अधिक सतावै,
हँस हँस माता कंठ लगावे ||१||
केश पकरि के करै नख घाता,
तोऊ न हेत उतारै माता ।।२।।
कोटिन अवगुन बालक करई,
मात-पिता चित एक न धरई ||३||
बालक को विष दे महतारी.
रक्षा को अब करे हमारी ||४||
कहे कबीर जननी की बाता,
बालक दुखित दुखित भई माता॥५॥
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