धुन सुन के मनुवा मगन हुआ
धुन सुन के मनुवा मगन हुआ
धुन सुन के मनुवा मगन हुआ ।
लाग समाधि रहो गुरु चरनन,
अंदर का दुख दुर हुआ ||१||
सार सब्द के डोरी लागी,
ता चढ़ हंसा पार हुआ ||२||
सुन्न शिखर पे झालर झलके,
झरत अमी रस प्रेम चुवः ॥३॥
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
चाख चाख अलमस्त हुआ
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