संतो काम सकल जग खाया

 संतो काम सकल जग खाया

संतो काम सकल जग खाया ।

स्वादी जीव कोई न बांचे,

पर घर गमन कराया टिका

काम लहर काहू न चीन्हा,

कहो कहाँ से आया ।

जासों भयो सोई धर खायो,

खाता विलंब न लाया ||१||

अद्या रुप ब्रह्म क्षै कीन्हो,

तन दे माथ गिराया ।

ब्रम्हा विष्णु मुनि जन योगी,

सकल जीव भरमाया ॥२॥

स्वर्ग मृत्यु पाताल कामवश,

चार खान रहु छाया ।

कहे कबीर काम जोरावर,

तीन लोक धर खाया ॥३॥

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