हमन है इश्क मस्ताना
हमन है इश्क मस्ताना
हमन है इश्क
मस्ताना,
हमन को होशियारी क्या ।
रहे अजाद या जग से,
हमन दुनिया से यारी क्या ||१||
खलक' सब नाम अपने को,
बहुत कर सिर पटकता है।
हमन गुरू ज्ञान आलम है,
हमन को नामदारी क्या ॥२॥
जो बिछु रे है पियारे से,
भटकते दर बदर फिरते ।
हमारा यार है हममें,
हमन को इन्तजारी क्या ॥३||
ना पल बिछुरे पिया हमसे,
ना हम बिछुरे पियारे से ।
उन्ही से नेह लागी है,
हमन को बेकरारी क्या ||४||
कबीर इश्क का माता',
दुई को दूर कर दिल से ।
ये चलना राह नाजुक है,
हमन सिर बोझ भारी क्या ||५||
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