कहें कबीर सुन गोरख जोगी,
कहें कबीर सुन गोरख जोगी,
गोरख हम जबसे भये बैरागी
गोरख हम जबसे भये बैरागी,
मेरी सुर्त आदि से लागी ।।टेका।
धुंधी काल धुंध का मेला,
नहीं गुरु नहीं चेला ।
ताही दिन हम मूड मूंड़ाये,
जब वह पुर्ष अकेला ||१||
धरती नहीं जब टोपी लीन्हा,
ब्रह्मा नही तब टीका ।
महादेव का जनमों नाहीं,
तब से योग हम सीखा ॥२॥
सतजुग में हम लीन फाउरी,
द्वापर लीन्हे डंडा ।
त्रेता में आडबंद बैंचे,
कलियुग फिरे नौ खंडा ॥३॥
काशी में विश्राम कियो हैं,
रामानंद चेताया ।
हंस उबारन आया ।।४।।
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