मन रे तू मन ही में उलट समाना

 मन रे तू मन ही में उलट समाना

मन रे तू मन ही में उलट समाना ।

या मन हस्ती जंगल बासा,

खोज सकल फल खाता।

जो बस परे महावत के रे. ,

दे अंकुश मुरकाता' ||

या मन जोगी या मन भोगी,

या मन देवी देवा ।

या मन उलट होत बैरागी,

करै गुरु की सेवा ||२||

मन के खोज कोई न पावे,

शिव सनकादिक ब्रम्हा ।

अपरमपार पार नहिं पावे,

अगम अगोचर महिमा ||३||

नियरे के दूर दूर के नियरे,

जिन जैसा अनुमाना ।

ओर बतिया के चढ़े बडेरी,

जिन रे पिया तिन जाना ||४||

अनुभव कथा कौन से कहिये,

है कोई संत विवेकी ।

कहैं कबीर गुरु दिये पलीता,

वा घर बिरला पेखी ||५||

Comments

Popular posts from this blog

पंडित बाद बदे सो झूठा

झूलनी का रंग सांचा, हमार पिया |

गयो-गयो रे सास तेरो राज, जमाना आयो बहुअन का।