संतो देखत जग बौराना

 संतो देखत जग बौराना

संतो देखत जग बौराना।

साँच कहौं तो मारन धावै,

झूठे जग पतियाना ॥टेक

नेमी देखा धरमी देखा,

प्रातः करै असनाना ।

आतम मारि पषाणे पूजै,

उनमें कछु न ज्ञाना ॥१॥

बहुतक देखे पीर औलिया,

पढ़े कितेब कुराना ।

कर मुरीद तदबीर बतावै,

उनहुँ खुदा न जाना ॥२॥

आसन मार डिंभ' धरि बैठे,

मन में बहुत गुमाना ।

पीतर पाथर पूजन लागे,

तीरथ गर्व भुलाना ॥३॥

टोपी पहिरे माला पहिरे,

छाप तिलक उनमाना।

साखी शब्द गावत भूले,

आतम खबर न जाना ||४||

घर घर मंतर देत फिरत है.

महिमा के अभिमाना ।

गुरु सहित शिष्य सब बूड़े,

अंत काल पछिताना ।।५।।

हिंदू कहे मोहि राम पियारा,

तुरक कहे रहिमाना ।

आपस में दोऊ लर लर मूवे,

मर्म काहू न जाना ।।६।।

केते कहों कहा ना माने,

ई सब भर्म भुलाना ।

कहे कबीर सुनो भाई साधो,

सहजे सहज समाना ।।७।।


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