अब तुम कब सुमरोगे नाम

 अब तुम कब सुमरोगे नाम

अब तुम कब सुमरोगे नाम,

जिवरा दो दिन का मिहमान ।

गरभापन में हाथ जुड़ाया,

निकल हुआ बेइमान ||टेक।।

बालापन में खेल गुमाया,

तरूनापन में काम |

बुढ़ापन में कांपन लागा,

निकल गया अरमान ||१||

झूठी काया झूठी माया,

आखिर मौत निदान ।

कहत कबीर सुनो भाई साधो,

यही घोड़ मैदान ॥२॥

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