नाम को या विधि ध्यान धर
नाम को या विधि ध्यान धर
नाम को या विधि ध्यान धरै ।।
जैसे अमली अमल को चाहे,
छिन छिन सुर्त करै ।
जो लग अमली अमल न पावै,
तो लग तलफ मरै ||१||
फनि मनियां भई काढ़ धरत है,
फैल के ओस चरै ।
कछू चरै कछु मन तन चितवै,
बिछरत तलफ मरै ।।२।।
जैसे सती जरै पिय के संग,
नेक न सोच करै ।
आपन चीर पिया को लेके,
विहसत जाय जरै ।।३।।
जैसे सुरत गगन को चाहे,
महलन खोज करै ।
कहें कबीर सुनो भाई साधो,
भूला भटक मरै ।।४।।
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