अमरपुर ले चलु हो सजना
अमरपुर ले चलु हो सजना
अमरपुर ले चलु हो सजना ।।
अमरपुरी की संकरी गलियाँ,
अड़बड़ है चलना ।
ठोकर लगी गुरू ज्ञान सबद की,
उघर गये झपना ||१||
वोहि अमरपुर लागी बजरिया,
सौदा है करना
वोहि अमरपुर संत बसत है,
दरसन है लहना२ ॥२॥
संत समाज सभा जहँ बैठी,
वहीं पुरूष है अपना
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
भवसागर है तरना ||३||
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