हम न मरै मरिहैं संसारा
हम न मरै मरिहैं संसारा
हम न मरै मरिहैं संसारा,
हमको मिला जियावन हारा |टेक।।
अब न मरूँ मेरा मन माना,
मरे सोई जो नाम न जाना ||१||
साकट मरै सन्त जन जीवै,
भरि भरि नाम रसायन पीवै ॥२॥
हरी मरै तो हमहुँ मरि हैं,
हरि न मरै हम काहे को मरिहैं ॥३॥
कहें कबीर मन मन ही मिलावा,
अमर भये सुख सागर पावा ॥४॥
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