तज काम क्रोध मद मोह होरी खेलिये
तज काम क्रोध मद मोह होरी खेलिये
तज काम क्रोध मद मोह होरी खेलिये।
ज्यों पंकज जल में रहे,
जल नहीं परसत देह ।
उर माया मन परहरी,
सतगुरु से कर नेह ।।१।।
ज्ञान सुगंध गोद भर लीजे,
कुबुध गुलाल उड़ाइये ।
सत्यनाम गुन
गाइये,
यश को डफ बजाइये ||२||
मानुष तन दुर्लभ है संतो,
खेलो फाग सुभाव ।
कहें कबीर चित चेतो हंसा,
बहुरि न ऐसो दाव ||३||
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