महेरम होय सो लख पावे

 महेरम होय सो लख पावे

महेरम होय सो लख पावे,

संतो ऐसा देस हमारा ||टेक

वेद किताब पार ना पावे,

कहन सुनन से न्यारा

जात बरन कुल किरिया नाही,

संध्या नेम अचारा ॥१॥

बिन बादर जहाँ बिजली चमके,

बिन सूरज उजियारा ।

बिना सीप जहाँ मोती उपजै,

बिन सुर शब्द उचारा ॥२॥

जैसे बुन्द परे दरिया में,

ना मीठा ना खारा ।

सुन्न शिखर पर बजत संगीता,

किंनरी बीन सितारा ||३||

जो जो गये ब्रह्म तेहि दरसे,

आगे अगम अपारा ।

कहें कबीर सुनों भाई साधो,

पहुंचे गुरु का प्यारा ||४||

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