अवधू कहि बतलाऊं कैसा
अवधू कहि बतलाऊं कैसा
अवधू कहि बतलाऊं कैसा,
एक अगम अगोचर ऐसा ।।टेक
जो कहिये सो है भी नाही,
है सो कहा न जाई ।
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सैना बैना कासो कहिये,
।
ज्यों गूंगे गुड़ खाई ||१||
काजी हाथ कितेब कुराना,
पंडित वेद पुराना ।
वह अक्षर लिखबे में नाहीं,
मात्रा लगे न काना ||२||
दृष्टि न आवे मुष्टि न आवे,
२०
विनसै नहि होय नियारा ।
ऐसा ज्ञान कथै गुरू मेरे,
संतो करो विचारा ||३||
कोई ध्यावे निराकार को,
३)
कोई ध्यावे ओंकारा ।
वो तो पद दोऊ से न्यारा,
जानै
जाननहारा ||४||
नाद वेद लों पढ़ना गुनना,
औ चतुराई भीना ।
कहे कबीर वह पड़य न परलै,
सो सत बिरले चीन्हा ॥५॥
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