गुरू से लगन कठिन मेरे भाई

 गुरू से लगन कठिन मेरे भाई

गुरू से लगन कठिन मेरे भाई ।

लगन लगे बिन काज न सरिहैं,

जीव परलय तर जाई ।।टेका।

मिरगा नाद शब्द का भेदी,

शब्द सुनन को जाई ।

सोई शब्द सुनि प्रान देत है,

तनिको न मन में डराई ||१||

तजि घरबार सती होय निकसी,

सत करन को जाई ।

पावक देख डरे नहिं मन में,

कूद परे छिन माही ।।२।।

पपीहा स्वाति बूंद के कारन,

पिया पिया रट लाई ।

प्यासे प्रान जाय क्यों न अबही,

और नीर नहिं भाई ॥३॥

दो दल आन जुरे जब सन्मुख,

सूरा लेत लड़ाई ।

टूक टूक होय गिरे धरनि में,

खेत छोड़ नहिं जाई ॥४॥

छोड़ो अपने तन की आशा,

निरभय होय गुन गाई ।

कहे कबीर ऐसी लौ लावे,

सहज मिले गुरू आई ॥५॥

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