चलना है दूर मुसाफिर
चलना है दूर मुसाफिर
चलना है दूर मुसाफिर काहे सोवै रे ॥
चेत अचेत नर सोच बावरे,
बहुत नींद मत सोवै रे ।
काम क्रोध मद लोभ में फंस के,
उमरिया काहे खोवै रे ||१||
सिर पर माया मोह की गठरी,
संग दूत तेरे होवै रे ।
सो गठरी तेरी बीच में छिन गई,
मूड़ पकरि कहा रोवै रे ||२||
रास्ता तो वह दूर विकट है,
चलब अकेला होवै रे ।
संग साथ तेरे कोई न चलेगा,
काकै२ डगरिया जोवै रे ॥३॥
गहरी नदिया नाव पुरानी,
केहि विधि पार तू होवै रे।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
ब्याज धोखे मूल मत खोवै रे ||४||
Comments
Post a Comment