माया महा ठगिनी हम जान

 माया महा ठगिनी हम जान

माया महा ठगिनी हम जानी।

तिरगुन फांस लिये कर डोले,

बोले मधुरी बानी ||

केशव के कमला होय बैठी,

शिव के भवन भवानी

पंडा के मूरत होय बैठी,

तीरथ हूँ में पानी

जोगी के जोगीन होय बैठी,

राजा के घर रानी


काहू के हीरा होय बैठी,

काहू के कौड़ी कानी ||२||


भक्ता के भक्तिन होय बैठी,

ब्रह्मा के ब्रह्मानी

कहे कबीर सुनो भाई साधो,

यह सब अकथ कहानी ||३||

Comments

Popular posts from this blog

पंडित बाद बदे सो झूठा

झूलनी का रंग सांचा, हमार पिया |

गयो-गयो रे सास तेरो राज, जमाना आयो बहुअन का।