दास पर नाम ध्वजा फहराई
दास पर नाम ध्वजा फहराई
दास पर नाम ध्वजा फहराई।।
काल जंजाल निकट नहिं आवै,
माया देख
जो कोई द्रोह कियो संतन से,
हरि को नहीं सुहाई ॥१॥
हरनाकुस की वा गति हो गई,
रावन धूर उड़ाई ।
दूरयोधन परीक्षित राजा,
फिर पीछे पछताई ॥२॥
सुर पंडित औ नृपत बादशाह,
ऊँची पदवी पाई ।
भक्ति बिना सब तुच्छ बरोबर,
बांधे यमपुर जाई ||३||
का भये बेद पुरान गुन गाये,
सत्य दया नहिं आई ।
अहंकार में सबहि भुलाने,
अजगर देह सो पाई ||४||
हम तो कान राखि नहिं भाई,
ज्यों का त्यों ठहराई ।
भावे कोई सुख दुख कर माने,
भक्ति का पंथ चलाई ॥५॥
जोग यज्ञ तीरथ ब्रत संयम,
करनी कोट कराई ।
नाम बिना सबही हैं खाली,
कहे कबीर समुझाई ॥६॥
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