संतो निरंजन जाल पसारा

 संतो निरंजन जाल पसारा

संतो निरंजन जाल पसारा ।

स्वर्ग पताल रचियो मृत्युमंडल,

तीन लोक विस्तारा ||टेक।।

ब्रह्मा विष्णु शम्भू प्रकट कर,

तेहि दियो सिर भारा ।

ठाँव ठाँव तीरथ व्रत रोपे,

ठगवे को संसारा ||१||

चौरासी लख जीव फंदाने,

कबहुं न होय उबारा ।

जार बार भसम कर डारे,

फिर फिर दे अवतारा ||२||

आवागमन

रहे उरझाई,

बूड़े भव मंझारा ।

सतगुरु शब्द के बिना नर चिन्हे,

कैसे उतरे पारा ।।३।।

माया फांस सकल जीव फांसे,

आप भये करतारा ।

अमर लोक जहां पुरुष विदेही,

जहां के मूंदो द्वारा ॥४॥

ब्रम्हा विष्णु महेश्वर देवा,

ये बोइले ब्यौहारा ।

जो साहब से निरंजन प्रगटे,

सो सबहीं से न्यारा ||५||

महाकाल से बांचे चाहो,

गहो शब्द टकसारा |

कहे कबीर अमर कर राखो,

जो निज होय हमारा ||६||

Comments

Popular posts from this blog

पंडित बाद बदे सो झूठा

कचौड़ी गली सून कैले बलमु ।

बसो मोरे नैनन में नंदलाल।