अवधू भजन भेद है न्यारा

 अवधू भजन भेद है न्यारा

अवधू भजन भेद है न्यारा ।।

का मुद्रा माला के पहिरे,

का चंदन घिसे लिलारा ।

मुड़ मुड़ाये का जटा रखाये,

का अंग लगाये छारा ||१||

का गाये का लिख बतलाये,

का भरमें संसारा ।

का संध्या के तरपन कीन्हे,

का षट कर्म अचारा ||२||

का पूजा पाहन के कीन्हे.

का कंद मूल अहारा ।

तीरथ व्रत का संजम कीन्हे,

जो नहिं तत बिचारा ॥३॥

बिन परिचे स्वामी होय बैठे,

विषय करै व्यापारा ।

दया 'धर्म के मर्म न जाने,

बाद करै हकारा ॥४॥

फूके कान कुमत अपनी सो,

यह बोझे वह भारा ।

बिन सतगुरु गुरु केते बहि गये,

लोभ लहर की धारा ||५||

गहिर गम्भीर पीर जो पावे,

खज अखज सों न्यारा ।

भये सुदिष्ट पार चलने को,

सहज मिटे भ्रम भारा ॥६॥

निर्मल जोत आतमा जागे,

है निजनाम अधारा ।

कहें कबीर जाने से कहिये,

मैं ते तजे बिकारा ||७||

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