अवधू कुदरत की गति न्यारी

 अवधू कुदरत की गति न्यारी

अवधू कुदरत की गति न्यारी।

रंक निवाज करै वह राजा,

भूपति करे भिखारी टेक।।

येते लौंग हरप नहिं लागे,

चंदन फूल न फूला ।

मच्छ शिकारी रमें जंगल में,

सिंह समुद्रहि झूला ॥१॥

रेंडारूख भयो मलयागिर,

चहुँ दिस फूटी बासा ।

तीन लोक ब्रांड खंड में,

अंधा देखे तमासा ॥२॥

पंगा मेर सुमेर उलंघे,

त्रिभुवन मुक्ता डोले ।

गूंगा ज्ञान विज्ञान प्रगासे,

अनहद बानी बोले ||३||

अकाशहि बांध पताल पठावै,

शेष स्वर्ग पर राजे ।

कहे कबीर राम है राजा,

जो कुछ करे सो छाजे ||४||

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