अब हम अविगत से चलि आये

 अब हम अविगत से चलि आये

अब हम अविगत से चलि आये,

कोई भेद मरम न पाये ||टेक।।

ना हम जन्में गर्भ बसेरा,

बालक होय दिखलाये ।

काशी शहर जलहि बीच डेरा,

तहाँ जुलाहा पाये ||१||

हते विदेह देह धरि आये,

काया कबीर कहाये ।

बंश हेत हंसन के कारन,

रामानन्द समुझाये ।।२।।

ना मोरे गगन धाम कछु नाही,

दीखत अगम अपारा ।

शब्द स्वरूपी नाम साहब का,

सोई नाम हमारा ।।३।।

ना हमरे घर मात पिता है,

नाहि हमरे घर दासी ।

जात जोलाहा नाम धराये,

जगत कराये हाँसी ।।४।।

ना मोरे हाड़ चाम ना लोहू,

हौं सतनाम उपाशी ।

तारन तरन अभयपददाता,

कहैं कबीर अविनाशी ||५||

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