इस तन धन की कौन बड़ाई
इस तन धन की कौन बड़ाई
इस तन धन की कौन बड़ाई,
देखत नैनों में मिट्टी मिलाई ।।टेक
कंकर चुन चुन महल बनाया,
आपही जाकर जंगल सोया ॥१
हाड़ जरे जैसे लाकर झूरी,
केस जरे जस घास की पूरी ॥२
यह तन धन कछु काम न आई,
ताते नाम जपो लौलाई ||३||
कहें कबीर सुन मेरे गुनिया,
आप मुवे पाछे डूब गई दुनिया ||४||
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