मन रे तू धीरज क्यों न धरे
मन रे तू धीरज क्यों न धरे
मन रे तू धीरज क्यों न धरे ।।
शुभ औ अशुभ कर्म पूर्व लेखे,
रती घटे न बढ़े ।
होनहार होवे सो होवे,
चिन्ता काहे करे ||१||
पशु पक्षी औ कीट पतंगा,
सबकी खबर करे ।
गर्भवास में रक्षा कीन्ही,
सो कैसे बिसरे ॥२॥
तुम तो हंस वोही साहेब के,
भटकत काहे फिरै ।
कारज नाहिं सरै ||३||
सतगुरु छोड़ और को ध्यावे,
मात पिता सुत सम्पत दारा,
मोह के जार जरे ।
समुझ देख मन कोई न अपना,
धोखा में काहि परे ||४||
संतन शरन गहो मन मोरे,
कोटन व्याधि हरे ।
कहें कबीर सुनो भाई साधो,
सहजे जीव तरे ॥५॥
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