मन रे तू अब की बेर सम्हारो
मन रे तू अब की बेर सम्हारो
मन. रे तू अब की बेर सम्हारो ।
जन्म अनेक दगा में खोयो,
बिन गुरु बाजी हारो ||टेक।।
बालापने ज्ञान नहि तन में,
जब जनमें तब बारो ।
तरुनापन तामस में खोयो,
कीजे कूच नगारो ||१||
सुत दारा मतलब के साथी,
ताको कहत हमारो ।
४३
तीनलोक और भुवन चतुरदस,
सबहि काल को चारो ||२||
पूर रह्यो जगदीश जगत गुरु,
मिले रहे औ न्यारो ।
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
सब घट देखनहारो ||३||
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