काया चलत प्राण काहे रोई

 काया चलत प्राण काहे रोई

काया चलत प्राण काहे रोई।।

तुम्हरे संग बहुत सुख कीन्हा,

नित उठ मल मल धोई ।

तुम तो हंस चले घर अपने,

हमको चलत बिगोई ।।

हंस कहै सुन काया बौरी,

मेरो तेरो संग न होई ।

तोसे घट बहुतेरे छोड़े,

संग न लागे कोई ॥

लट छरियाय वाके माता रोवे,

खाट पकर वाके भाई ।

आंगन में जाके तिरिया रोवे,

हंस अकेला जाई ।।

सिव सनकादिक औ ब्रह्मादिक,

शेष सहस मुख होई

जिन जिन देह धरी दुनिया में,

थिर ना रहिया कोई ।

पाप पुन्य दोउ जन्म संघाती,

समुझ देख नर लोई

कहे कबीर प्रभु पूरण की गति,

बुझे बिरला कोई ।

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