कौन मिलावे मोहे जोगिया
कौन मिलावे मोहे जोगिया
कौन मिलावे मोहे जोगिया,
जोगिया बिन रहो न जाय।।टेक।।
हौं हिरनी पिय पारधी,
मारा शब्द के बान ।
जाहि लगे सोई जानिया,
और दरद नहिं आन ||१||
पिय कारन पियरी भई,
लोग कहें तन रोग ।
जप तप लंघन' मैं करौं,
पिया मिलन के योग ।।२।।
हूँ तो प्यासी पिव की,
रटौं सदा पिव पिव ।
पिया मिले तो जीविहौ,
ना तो सहजे त्यागों जीव ॥३॥
कहे कबीर सुन जोगिनी,
तन ही में मन ही समाय।
पिछली प्रीत के कारने,
जोगी बहुरि मिलेंगे आये ॥४॥
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