जोगी मन ना रंगा रंगाये कपड़ा
जोगी मन ना रंगा रंगाये कपड़ा
जोगी मन ना रंगा रंगाये कपड़ा।
तिल तिल जो सरी बनाये,
सिरजनहार नहीं पकड़ा ।।टेका
या ठिकरा के मर्म न जाने,
भटकत फिरे जंगल सेहड़ा।
सब सुख छोड़ जंगल में बैठे,
काम जराय भय हिजड़ा ॥१॥
आसन मार डिंभ' धर बैठे,
दाढ़ी रखाय भये बकरा
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
साहेब छोड़ पुजे पथरा ||
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