क्या सोया उठ जाग मन मेरा


क्या सोया उठ जाग मन मेरा

क्या सोया उठ जाग मन मेरा,

भई भजन की बेरा रे ||टेका।

रंग महल तेरा पड़ा रहेगा,

जंगल होगा डेरा रे ।

सौदागर सौदा को आया,

हो गया रैन बसेरा रे ॥१॥

कंकर चुन चुन महल बनाया,

लोग कहें घर मेरा रे ।

ना घर तेरा ना घर मेरा,

चिड़िया रैन बसेरा रे ॥२॥

अजावन का सुमिरन करले,

शब्द स्वरूपी नामा रे ।

भँवर गफा में अमृत चूवे,

पीवे संत सुजाना रे ।।३।।

अजावन वे अमर पुरूष है,


जावन सब संसारा रे ।


जो जावन का सुमिरन करिहैं,


पड़े चौरासी धारा रे ||४||


अमरलोक से आया बंदे,


फिर अमरापुर जाना रे ।


कहें कबीर सुनों भाई साधो,


ऐसी लगन लगाना रे ॥५।

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