संतो गगन मंडल करो बासा

 संतो गगन मंडल करो बासा

संतो गगन मंडल करो बासा,

जहां देखो अजब तमाशा टेका।

गढ़ मेरो गगन सुरति मेरो चौका,

चेतन चैवर दुरावै ।

इंगला पिंगला सुषमन नाड़ी,

अनहद बीन बजावै ॥१॥

अष्ट कमल दल पंखुरी बिराजे,

उलटा ध्यान लगावै ।

पाँच पचीस एक घर लावै,

तब धुन की सुध पावै ॥२॥

त्रिकुटी घाट अस्नान को करले,

रवि शशि सुषमन होई।

हंसा केल करत साजन संग,

एक महल में दोई ।।३।।

बिन बादल जहां बिजली चमके,

बिना सीप के मोती ।

कहें कबीर सुनो भाई साधो,

निरखहू निरमल ज्योती ||४||

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