अचरज देखो कामिनी

 अचरज देखो कामिनी

अचरज देखो कामिनी,

कहते को पतियाय ।

अधर साहब हम देखिया,

सतगुरु डंडिया फंदाय ॥टेक।।

चंद सूर जहां नहीं,

जहाँ न धरती अकाश ।

तौन पुर्ष मोरे प्रीतम,

केहि विध करो निवास ॥१॥

गुरु दरशन के कारने,

सरबस देऊं लुटाय ।

एक पलक के बिछुरे,

अब मोहि कछु न सुहाय ||२||

गुरू दरसन हम पायल,

छूटल कुल परिवार ।

अब जैहों पुर आपने,

परख परख टकसार ||३||

कहे कबीर धर्मदास सो,

हिरदे करो बिचार |

अरस परस करो कामिनि,

निर्गुण नाह तुम्हार ||४||

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