घूघट के पट खोल रे

 घूघट के पट खोल रे


चूँघट के पट खोल रे,

तोहे पिया मिलेंगे ||टेक।।

घट घट में वह सांई रमता,

कटुक वचन मत बोल रे ॥१॥

धन जोबन का गर्व न कीजै,

नाजियही

झूठा पचरंग चोल रे ॥२॥

शून्य महल में दियना बारि ले,नागा नंगा

आसन से मत डोल रे ॥३॥

जोग जुगति से रंग महल मे,

पिया पायो अनमोल रे ॥४॥

कहें कबीर आनंद भयो हैं,


बाजत अनहद ढोल रे ॥५॥

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