साधो यह मुरदों का गाँव
साधो यह मुरदों का गाँव
साधो यह मुरदों का गाँव ।।
पीर मरे पैगम्बर मर गये,
मर गये जिन्दा योगी
चन्दो मरिहै सुरजो मरिहैं,
तैतिस कोटि देवता मर गये,
राजा मरिहै परजा मरिहै',
मरिहैं वैद्य औ रोगी ||१||
मरिहैं धरनि आकाशा |
चौदह भुवन के चौधरि मरिहैं,
इनहूँ की क्या आशा ||२||
नौ भी मर गये दस भी मर गये,
मर गये सहस अठासी ।
पड़ी काल की फांसी ||३||
नाम अनाम रहत है नित ही,
दूजा तत्त्व न होई ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो,
भटक मरो मत कोई ||४||
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